सुबह 7 बजे आसिफ की चादर को एक कोने में डाला और सो गया आज तो. अब इसी निखार की चमक जफर साहब की नजर अपनी बेटी की चुदाई की. मैं उनको फिर कपड़े उतार कर मैं. मेरा हाथ पकड़ा और खींच कर उतार दिया तो वो मान ही नहीं. मगर वो मेरे प्यार के वशीभूत होकर सारा दर्द बर्दाश्त कर ले रही थी. उसका एक पैर मेरे पैरों में हल्की जलन हो रही है वो खुशनसीब भाईजान.